बटन दबाते ही घूमने लगा पंखा कितना आज्ञाकारी है इसे बनाया नहीं है मैंने खरीदा है
बिके हुए लोग आदेश बजाते हैं इच्छाओं पर नाचते हैं
जैसे मेरी इच्छाओं के आगे नतमस्तक यह पंखा
हिंदी समय में बसंत त्रिपाठी की रचनाएँ